श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त लेख
दोस्तो आपको हमारी बेबसाइट के माध्यम से पोराणिक कथा श्रीमद्भगवतगीता का लेख प्रस्तुत किया जा रहा है जिसे आप देखे सुने व अनुसरण करें इससे हमको अपार ज्ञान की की प्राप्ती होती है।और हमारे जीवन में आने वाली कठिनाईयों का समाधान भी है ,महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण ने अर्जुन को शिक्षा दी गई थी उनका श्रीमद्भगवतगीता में वर्णन किया गया है। गीता ग्रन्थ में उन उपदेशों का आज भी पालन किया जाता है और हम सभी व्यक्यिों को अपने जीवन में जीवन जीने का सही तरीका सिखाती है।श्रीमद्भगवतगीता एक पवित्र ग्रन्थ है, जिसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक है, जिनमें धर्म कर्म और मनुष्य को सदमार्ग पर चलने का उपदेश दिया गया है इसके रचयिता श्री वेदव्याजी है ।
श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण द्वारा दिये गये उपदेशों मे 5 महत्वपूर्ण बातें
- श्रीमद्भगवतगीता जी के अनुसार व्यक्ति को अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिये प्रत्येक व्यक्ति को कभी क्रोध नही करना चाहिए।
- श्रीमद्भगवतगीता जी केअनुसार व्यक्ति को आत्मनिरिक्षण करना चाहिए अर्थात हर व्यक्ति को आत्मज्ञान होना जरूररी है।
- श्रीमद्भगवतगीता जी में यह बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना स्वंय आंकलन करना अत्यंत आवश्यक है।
- श्रीमद्भगवतगीता जी के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन व स्वभाव पर नियंत्रण रखना अत्यन्त आवश्यक है।
- श्रीमद्भगवतगीता के उपदेशों के अनुसार मनुष्य को उसकी करनी के अनुसार फल की प्राप्ति होती है, बिना सोचे समझे अर्थात प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मो पर ध्यान देना चाहिए।
श्रीमद्भगवतगीता सार के मुख्य बिन्दु
- मनुष्य तू व्यर्थ चिंता करता है, व्यर्थ ही तुझे किस बात का डर है, कौने तुझे मार सकता है। आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है।
- मनुष्य जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, तुम भूतकाल, भविष्य की चिन्ता मत करो, यह वर्तमान चल रहा है।
- मनुष्य तुझे क्या हो गया है जो तू रोता है खाली हाथ आया है और खाली हाथ जायेगा ।
- मनुष्य यह शरीर आपका नही है, यह शरीर अग्नि ,जल, वायु,आकाश से बना है,यह भय,चिंता,शोक से मुक्त है,इस शरीर को भगवान को समर्पित कर दो ।
- मनुष्य यही सृष्टि का परिवर्तनशील युग है।
गीताजी के प्रथम अध्याय का सार Summary of the first chapter of Geetaji
श्रीपार्वतीजी ने कहा, स्वामी आप सभी तत्वों के ज्ञाता है,आपकी कृपा से मुझे श्री विष्णु से संबंधित नाना प्रकार के धर्म सुनने को मिलते है,जो पूरे विश्व का कल्याण करने वाले है,अब मै गीता जी का महात्म अर्थात उसका सार सुनना चाहती हॅू, जिसे सुनने मात्र से ही श्री हरि की भक्ति बढती है। श्रीहरि
भगवान शंकर जी का संवाद-
भगवान शंकर जी ने पार्वती जी से कहा हम भगवान महाविष्णु की पूजा करते है,जिनके देवता अलसी के फूल की तरह काले होते है,जिनका वाहन गरूड राजपक्षी है,जो अपनी महिमा से कभी अलग नही होते है,और शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते है एक समय की बात है मुरा का संहार करने वाले विष्णु भगवान शेषनाग के आसन पर सुखपूर्वक विराजमान थे उस समय सम्पूर्ण लोगो को आनन्द देने वाली लक्ष्मी ने प्रेंम से आदरपूर्वक अपना प्रश्न किया।श्रीहरि
लक्ष्मीजी ने संवाद किया और पूछा –
भगवान आप जो इस सागर में सोये हुये है जो इस सम्पूर्ण संसार का पालन करने वाले है और सम्पूर्ण संसार का पालन करते हुये भी अपने ऐश्वर्य और तेज की ओर उदासीनता से उतरते है इसका कारण क्या है मुझे भी सुनाओं ।श्रीहरि
भगवान शंकर ने कहा-
हे पार्वती देवी मैं सोया हुआ नही हॅू मुझे नींद नही आ रही है, मैं तत्वों को बदलने वाली अपनी अन्दर की दृष्टि से अपने ही तेज व प्रकाश को देश रहा हॅू जिसे योगी अपने तीक्ष्ण बुद्धी के बल पर अपने अन्तकरण से देखते है जिसे मीमांसक के विदवान वेदों के सार का निर्धारण करते हैं वह महेश्वर तेज, अजर, प्रकाशवान आत्मस्वरूप रोग और शोक से अलग हैं इन्हीं के अधीन इस विश्व का जीवन है मुझे भी ऐसा ही लगता है इस कारण लगता है कि मै उन्हे ललकार रहा हॅू।
श्री लक्ष्मीजी ने कहा –
आप योगी पुरूषों में यह जानने के लिए बहुत उत्सुक हॅू कि आपके बिना भी कुछ ध्यान करने योग्या है इस विश्व में आप स्वंय इस संसार के रचयिता और संहारकर्ता है आप महाबली, सर्वशक्तिमान है ऐसी स्थिति में भी यदि आप उस परम तथ्य से अलग है , तो मुझे इसका कारण बताये अर्थात बोध कराइये।
भगवान शंकर ने कहा –
आत्मा का स्वरूप रूप और अभाव आदि और अन्त से रहित है शुद्ध ज्ञान के तेज से उलब्ध और आनंदपूर्वक होने के कारण वही एक सुन्दर है वही मेरा दिव्य रूप है केवल आत्मा की एकता ही सभी के द्वारा समझने योग्य है इसका प्रतिपादन गीताजी शास्त्र में किया है। इस प्रकार भगवान विष्णु के इन वचनों को सुनकर अमित तेजस्वी लक्ष्मी जी ने शंकर को प्रस्तुत किया और कहा भगवान यदि आपका स्वभाव ही आनंदमय है और मन वाणी की पहुंच से दूर है, तो गीता उसे कैसे ज्ञात करती है आप मेरे इस संशय अर्थात प्रश्न का उत्तर देकर इसका निवारण करें।
श्री भगवान ने कहा –
हे देवी सुनो मै गीता में अपनी स्थति का वर्णन करता हॅू इस प्रकार पॉच अध्यायों को पॉच मुख, दस अध्यायों को दस भुजाऍ और एक अध्याय को उदर तथा दो अध्यायों को चरणकमल मानकर चले इस प्रकार इन अठारह अध्यायों को दैवीय विगह समझना चाहिए यह ज्ञान ही महापापियों का नाश कर सकता है पूर्ण ज्ञान वाला व्यक्ति जो प्रतिदिन गीता के एक या आधे अध्याय या एक आधे या चाैथाई श्लोक का अभ्यास करता है, वह एक ब्राहम्ण सुशर्मा की तरह मुक्त हो जाता है इसी बीच लक्ष्मीजी ने पूछा भगवान सुशर्मा कौन थे ? वह किस जाति का था और उसे किस कारण से मुक्त किया गया था ?
भगवान ने कहा – हे देवी सुशर्मा अत्यंत दुर्बल ज्ञान का व्यक्ति था वह पापियों का मुखिया था उनका जन्म वैदिक ज्ञान से रहित और क्रूर कर्म करने वाले ब्राहम्णों के परिवार में हुआ था न उसने ध्यान किया न भगवान का नाम लिया , न किसी का आदर घर पर किया न अतिथि सत्कार का आदर किया वह सदा विषय भोग के सेवन में अर्थात व्यभिचारी होने के कारण मग्न रहता था वह हल जोतकर और पत्ते बेचकर अपना गुजारा करता था वह शराब पीने का आदी था और मांस भी खाता था इस तरह उन्होने अपने जीवन का एक लम्बा समय व्यतीत किया एक दिन सुशर्मा एक महात्मा के बगीचे में पत्ते लेने के लिए भटक रहा था इसी बीच काल रूपी काले सर्प ने उन्हे डस लिया सुशर्मा की मौत हो गई और वह अनेको नरको में गया और वहा यतनाए खाकर मृत्यु लोक लौटा और वहा बैल बना गया उस समय किसी व्यक्ति ने आराम से अपना जीवन व्यतीत करने के लिए उसे खरीद लिया और उसकी पीठ पर बहुत बोझा ढोते ढोते बैल को बहुत पीडा हुई कुछ दिनों बाद उस बैल को उसका मालिक किसी उॅचे स्थान पर ले गया और बैल को तेजी के साथ घूमाता रहा है जिससे वह बैल मुर्छित होकर जीमन पर गिर पडा और बेहाश हो गया उस समय कौतूहलवश उसे देखने के लिए इकठठा हो गये उस समुदाय में से किसी पून्यआत्मा रूपी व्यक्ति ने कल्याण के लिए उस बैल को अपना पुण्य दान कर दिया और उसके बाद में लोगो ने भी अपने अपने पुण्यों को याद करके उसके लिए दान कर दिया उस भीड में एक वेश्या भी खडी थी उसे उसके पुण्य का पता नही था , फिर भी उसने लोगों को उस बैल के लिए कुछ बलि देते देखा और यमराज के दूत उस मृत पशु को यमपुरी ले गए और उसे वहॉ छोड दिया गया फिर वह भूलोक में आया और अच्छे कुल और शील ब्राहम्ण के घर पर जन्म लिया उस समय भी उसे अपने पूर्व जन्म की बाते याद थी बहुत समय के बाद उसका अज्ञान दूर करने वाले कल्याणकारी तत्वों के बारे में जिज्ञासा होने पर वह उस वेश्या के पास गया और उसके दान के बारे में बताते हुए पूछा तुमने कौने सा दान किया था वेश्या ने उत्तर दिया कि पिंजरे में बैठा तोता रोज कुछ न कुछ पढता है उसने मेरी अंतरात्मा को निर्मल कर दिया है मैने उसका पुण्य तुम्हारे लिए दान कर दिया था इसके बाद उन दोनों ने तोते से पूछा तो उस तोते ने अपने पिछले जन्म की याद करते हुए प्राचीन इतिहास बताया ।श्रीहरि
शुकदेवजी ने कहा –
मैं पूर्व जन्म मे मैं विदवान होते हुये भी अभिमान से मोहित था जो द्विवेश्ता के प्रति मेरा प्रेंम इतना बढ गया था कि मुझे सदाचारियों के प्रति जलन इर्ष्या होने लगी,फिर मैं मर गया ,उसके बाद मैं इस संसार में आया क्योंकि सभी ने मेरी निंदा की मैं तोते के परिवार में पैदा हुआ था पापी होने के कारण मैं छोटी सी उम्र में ही अपने माता पिता से बिछड गया था, एक दिन मैं गर्मी की तपन मै सडक पर पडा हुआ था कुछ महान ऋषियों ने मुझे वहां से उठाया और आश्रम में एक पिंजरे में बन्द कर दिया और वहॉ उनके द्वारा मुझे शिक्षा दी गई वहॉ पर मुनियों के बच्चों ने बडे आदर से साथ गीताजी के प्रथम अध्याय का पाठ किया उनकी बाते सुनकर मैं भी बार बार उस अध्याय का पाठ करने लगा इसी बीच वहां से एक चोरी करने वाला बहेलिया मुझे चुरा ले गया उसके बाद इस देवी ने मुझे खरीद लिया यह मेरी कहानी है, जो मैने आपको बतायी है विगत मैं मैने इस प्रथम अध्याय का अभ्यास किया था, जिसके द्वारा मैंने अपने पापों को दूर किया है फिर उससे इस वेश्या का अन्तकरण भी शुद्ध हुआ है इस प्रकार सुशर्मा पाप से मुक्त हो गया था इस प्रकार आपसे में बातें करके और गीता जी के प्रथम अध्याय के माहात्म्य की प्रशंसा करके तीनों अपने अपने घर पर गीताजी का अभ्यास करने लगे और फिर ज्ञान प्राप्त करके वे मुक्त हो गए इसलिए जो गीताजी के प्रथम अध्याय को पढता है, सुनता है,और उसका अभ्यास करता है, उसे इस भौंतिक भव सागर से पार होने में कोई परेशानियों का सामाना नही करना पडता है और अपने जीवन में अपार खुशियॉ ,धन, दौलत, वैभव ,सुख शान्ति मिलती है।