मनुष्य का सबसे बडा शत्रु आलस्य है
यह कहानी हमें एक कर्म का महत्व बताती है साथ ही यह भी शिक्षा मिलती है कि कर्महीन व्यक्ति के पास अगर पारस पत्थर भी हो तो वह उसे सामान्य पत्थर ही समझता है इसी प्रकार एक महान प्रतापी गुरू थे, जो अपने सभी शिष्यों से बहुत प्रेंम करते थे वे अपने सभी शिष्यों के गुणों एंव कमियों को देखते थे और उनको कमियों के बारे में बताते थे उनका एक ही उदेश्य था कि उनका प्रत्येक शिष्य जीवन में आगे बढे और उनका नाम रोशन करें उनके शिष्यों में एक शिष्य था जिसका नाम भोला था और वह स्वभाव से भी अत्यन्त भोला ही था अर्थात यथा नाम तथा गुण,लेकिन वह बहुत बडा आलसी था उसका आलस्य के कारण कुछ भी काम करने का मन नही करता था वह तो बिना कर्म के फल की इच्छा रखाता था यह अवगुण उनके गुरूजी को बहुत ज्यादा चिन्ता में डुबोये रखाता था वे उस आलसी शिष्य के बारे में हमेशा सोचते रहते थे ।
गुरू और शिष्य का संवाद –
एक दिन उस आलसी शिष्य ने गुरू को सिर झुकाकर प्रमाण किया गुरूजी ने आशिर्वाद दिया और कहा मैने जो पारस पत्थर की कहानी सुनाई थी वह पत्थर मेरे पास ही और कहा तुम इस पारस पत्थर को ले जाओ क्योंकि तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो इसलिए मै सूर्य उदय से लेकर सांय ति तुम्हे देना चाहता है तुम जो भी इस पत्थर से करना चाहो कर सकते हो तुम्हे जितना सोना चाहिए इस पारस पत्थर मे दिये गये समय में बना सकते है यह सुनकर आलसी शिष्य का खुशी का ठिकाना नही रहा गुरूजी ने उस पत्थर को दे दिया अब वह आलसी शिष्य सोचता रहा कि मुझे क्या करना चाहिए कितना सोना बनाना है मेरे जीवन में कितना सोना काम आयेगा इसी चिन्ता में उसने आधा दिन निकाल दिया और उसकी उसकी उसी चिन्ता में आंख लग गई और जब उसकी आंख खुली तो दिन ढलने का समय हो गया था और गुरू के वापिस आने का वक्त हो गया था और फिर उसे कुछ भी समझ में नही आ रहा था इतने में गुरूजी वापिस समय के अनुसार पारस पत्थर को लेने के लिए आ गये और शिष्य से उस पारस पत्थर को ले लिया शिष्य ने काफी विनती की लेकिन गुरूजी ने एक भी नही सुनी और उस पारस पत्थर को ले लिया ।
गुरूजी ने शिष्य को क्या समझाया –
सुनो शिष्य आलस्य व्यक्ति की समझ पर लगा देता है ताला इसी प्रकार तुमने अपना महान अवसर गवा दिया और उस किमती वस्तु से आप कुछ भी लाभ प्राप्त नही कर सके जो व्यक्ति अपने कर्म से भागता है और भाग्य उसका कभी ळाी साथ नही देता है तुम अच्छे शिष्य हो लेकिन आलस्य के कारण तुम कुछ भी नही कर सकते हो जिस दिन तुम इस आलस्य को त्याग दोगे उस दिन तुम्हारे पास कई पारस पत्थर होंगे उसी दिन से शिष्य ने गुरूजी की बात समझ में आई और स्वंय को पूरी तरह बदल लिया उसे कीाी भी किसी पारस पत्थर की लालसा नही रही थी ।
नोट:- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि आलस्य व्यक्ति को समाप्त कर देता है,व्यक्ति को भी आलस्य नही करना चाहिए । ”आलस्य विधा कुतो धनम्”
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